आशा करै बैकुंठ की, दुरमति तीनों काल |
शुक्र कही बलि ना करीं, ताते गयो पताल ||
व्याख्या:
आशा तो स्वर्ग की करता है, लकिन तीनों काल में दुर्बुद्धि से रहित नहीं होता | बलि ने गुरु शुक्राचार्य जी की आज्ञा अनुसार नहीं किया, तो राज्य से वंचित होकर पाताल भेजा गया |