भँवरा बारी परिहरा, मेवा बिलमा जाय |
बावन चन्दन धर किया, भूति गया बनराय ||
व्याख्या:
मनुष्य को ज्ञान होने पर – मन भँवरा विषय बाग लो त्यागकर, सतगुणरुपी मेवे के बाग में जाकर रम गया| स्वरुप – ज्ञानरुपी छोटे चन्दन – वृक्ष में स्थित किया और विस्तृत जगत – जंगल को भूल गया|