झाल उठी झोली जली, खपरा फूटम फूट |
योगी था सो रमि गया, आसन रहि भभूत ||
भावार्थ:
व्याख्या:
काल कि आग उठी और शरीर रुपी झोली जल गई, और खोपड़ी हड्डीरुपी खपड़े टूट – फूट गये| जीव योगी था वह रम गया, आसन, चिता पर केवल राख पड़ी है|
झाल उठी झोली जली, खपरा फूटम फूट |
योगी था सो रमि गया, आसन रहि भभूत ||
भावार्थ:
व्याख्या:
काल कि आग उठी और शरीर रुपी झोली जल गई, और खोपड़ी हड्डीरुपी खपड़े टूट – फूट गये| जीव योगी था वह रम गया, आसन, चिता पर केवल राख पड़ी है|