कबीर गाफिल क्यों फिरै क्या सोता घनघोर |
तेरे सिराने जम खड़ा, ज्यूँ अँधियारे चोर ||
व्याख्या:
ऐ मनुष्य ! क्यों असावधानी में भटकते और मोर की घनघोर निद्रा में सोते हो ? तेरे सिराहने मृत्यु उसी प्रकार खड़ी है जैसे अँधेरी रात में चोर |
कबीर गाफिल क्यों फिरै क्या सोता घनघोर |
तेरे सिराने जम खड़ा, ज्यूँ अँधियारे चोर ||
व्याख्या:
ऐ मनुष्य ! क्यों असावधानी में भटकते और मोर की घनघोर निद्रा में सोते हो ? तेरे सिराहने मृत्यु उसी प्रकार खड़ी है जैसे अँधेरी रात में चोर |