कबीर मनहिं गयन्द है, अंकुश दै दै राखु |
विष की बेली परिहारो, अमृत का फल चाखू ||
भावार्थ:
व्याख्या:
मन मस्ताना हाथी है, इसे ज्ञान अंकुश दे – देकर अपने वश में रखो, और विषय – विष – लता को त्यागकर स्वरुप – ज्ञानामृत का शान्ति फल चखो|
कबीर मनहिं गयन्द है, अंकुश दै दै राखु |
विष की बेली परिहारो, अमृत का फल चाखू ||
भावार्थ:
व्याख्या:
मन मस्ताना हाथी है, इसे ज्ञान अंकुश दे – देकर अपने वश में रखो, और विषय – विष – लता को त्यागकर स्वरुप – ज्ञानामृत का शान्ति फल चखो|